Friday, March 4, 2011

Pratayngira Stotra :-एकाहिकं द्याहिकं ज्याहिकं चतुर्थिकम, मासिकं द्वामासिकं त्रमासिकं चतुर्थमासिकं वातिकम पयतिकम श्लेशिमिकम सन्निपातिकम सतत ज्वर षड्ज्वर त्रिदोष भैद्ज्वर गृहनक्षत्र,दोषोंन्हर हरकाली शर शर गौरी धम-धम विद्यम आलो ताले,माल तमाले, गंधे-बंधे पच्च -पच्च विद्या मत्थ-मत्थ नाशय पापं हर-हर दुख्स्वप्न दिघ्न विनाशनी रजनि संन्धे दुन्दुभिनादे माने वेगे शंखनी व जणी गदिनी शूलनी अपमृत्यु विनाशनी विश्वेश्वरी द्रावनी-द्राणी केशि बदइते पशुपति गणिते दुष्ट बदइते पशुपति गणिते दुष्ट दुरन्ते भीम मर्दिन दुंदभि-दमनी शपरिर्की गति मातंगी ॐ आं ह्रीं कुं कौं कुरु-कुरु स्वाहा ! येमांदी विशन्ति प्रत्येक्षम्बा परोक्षे बातानरी नमोम मौम ॐ मर्दय-मर्दय पातय-पातय शोषय-शोषय उच्छादै -उच्छादै ब्रह्मणि माहेश्वरी कौमारि वाराही वैनायकी ऐन्द्री चान्द्री-चंद्री चामुंडे वारूणी वाय विलक्छ रक्ष प्रचंड तीव्रे इन्द्रो पेन्दरी शंखनी जय-विजय शान्ति स्वस्ति पुष्टि धृति विवर्धिनी कम्भाकुशे काम धुंदे सर्व काम वरंप्रदे सर्व भूतेषु माम प्रियं कुरु-कुरु स्वाहा ! आकरिपिनि आवेशिनी ज्वाला मालिनी,रमणि-रामणि, धरणी-धारिनि,तपनी-तापिनी, सदवोंन्मादिनी शोखणि सम्मोद्नी महानीले नीलपताके महागौरी महाश्रिये महामारि आदित्ये रश्मि जानिहवि यमघंटे किल-किल सुरभि चिंतामनि स्त्रोत पन्ने सर्व काम दुधे यथा मनिखितम कुर्यानी तन्मे सिंचन्तु स्वाहा ! ॐ भू: स्वाहा, ॐ भु: स्स्वाहा, ॐ स्व स्वाहा ! ॐ भूर्भुस्स्वस्स्वाहा पतये वागतं पापं ततैव प्रतिगछ्न्तु स्वाहा ! ॐ वने-रणे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं रं रक्ष-रक्ष सर्वोपद्र्वेभ्योम हामे-घैर छाग्नि समव्रतक विधुदर्कम मूर्ति कपिर्दनी दिव्य कनकाम मोरह्वी कचमाला धारिणी शिति कपाल भ्रघाघ्रा जिन परिवृते परमेश्वरि प्रिये मम शत्रुन छिन्छि-छिन्छि, भिथि-भिथि, विद्रावे-विद्रावे, देव पिल पिशाच नागासुर गरुण किन्नर विद्याधर ग्रह गन्धर्व यक्ष राक्षस प्रेत गुह्यकं लोकपाला नवग्रह न-लो पालो स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय चे मम धारकस्य शलवस्ता न निकीलिते-निकीलिते येचे मम विधान कर्म कुर्वन्ति कार्यन्ति वातेखाम विद्याम स्तभ्य- स्तभ्य स्थानं किलय-किलय, देशं घातय-घातय विश्वमूर्ते महातेजसे !

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